18 अगस्त 2011
काठमांडू। भारतीय फिल्मकार आदित्य सेठ के वृत्तचित्र से नेपाली समाज के कुछ तबकों में खलबली मच गई है। यह फिल्म गरीबी से त्रस्त पश्चिमी नेपाल के मजदूरों पर आधारित है, जो पेट भरने के लिए भारत की वाणिज्यिक राजधानी मुम्बई जाते हैं और वहां एड्स के शिकार हो जाते हैं। मुम्बई के सेठ की 65 मिनट की फिल्म जिसका नाम है 'बहादुर: द एक्सीडेंटल ब्रेव'। इस फिल्म की शूटिंग 2009 में हुई थी।
इस फिल्म से नेपाल के नीतिनिर्देशकों को यह अहसास हुआ कि राजनीतिक अव्यवस्था और अविकास से कितनी बड़ी मानवीय त्रासदी घट रही है। सेठ (46) ने बताया, "जब युवा नेपाली भारत आता है तो उसे धन और स्वतंत्रता दोनों मिलती है।" उन्होंने कहा कि जुए खेलने और शराब पीने के बाद दोस्तों के कहने पर वे रेड लाइट इलाके में जाना शुरू कर देते हैं। जब तक कि उन्हें मालूम होता है कि वह एड्स से पीड़ित हो चुके हैं तब तक वह अपनी पत्नी को संक्रमित कर चुके होते हैं।
सेठ की फिल्म में नेपाल के अच्छाम जिले को केंद्रित किया गया है। यह जिला माओवादी हिसा से बुरी तरह प्रभावित होने के कारण यहां से बड़ी संख्या में लोग रोजगार के लिए बाहर गए। उनकी फिल्म नेपालियों के प्रवास, इसके सामाजिक-राजनीतिक कारणों और मुम्बई में इनकी जीवनशैली पर आधारित है। नेपाल में इस फिल्म के प्रीमियर पर मिलीजुली प्रतिक्रिया हुई। नेपाल के रुढ़िवादी और बुजुर्ग दर्शकों की प्रतिक्रिया विपरीत रही। सेठ ने कहा, "उनमें से कई ने फिल्म के नाम पर आपत्ति जताई। भारत में नेपाली मजदूर अधिकतर सुरक्षा प्रहरी या घरेलू नौकर का काम करते हैं। इन्हें सामान्यत: बहादुर नाम से बुलाया जाता है।"
सेठ ने कहा कि मैंने इस नाम का प्रयोग किया है यह बताने के लिए कि कैसे भयावह गरीबी इन्हें पलायन करने पर मजबूर कर देती है। दर्शकों ने सेठ पर आरोप लगाया कि वह नेपाल के गौरव को कम कर रहे हैं। जबकि सेठ का कहना था कि युवाओं ने उनकी फिल्म की प्रशंसा की है।
सेठ ने कहा कि मैंने वास्तविकता को दिखाने का प्रयास किया है।
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